भारतीय इतिहास पर बड़ा कलंक है "ब्रैस्ट टेक्स"

ब्राह्मणवाद की इतिहासिक सचाई जो भारतीय इतिहास पर बड़ा कलंक है "ब्रैस्ट टेक्स"
आज कोई सोच सकता है कि 
कोई टैक्स ऐसा भी था जिसे हमारे ही सभ्य समाज के लोगो ने बनाया था  ?
क्या कोई सहन कर सकता है कि
 ऐसा टैक्स जिसमें उसके घर की माँ बहन बेटी पत्नी के स्तनों के टटोलकर उसके आकार और वजन के हिसाब से कोई " स्तन टैक्स " निर्धारित करे !!
चीख निकल जायेगी ..

वो साल था 
1729, का 
मद्रास प्रेसीडेंसी में त्रावणकोर ( केरल ) साम्राज्य की स्थापना हुई। 
साम्राज्य बना तो नियम-कानून बने। 
टैक्स लेने का सिस्टम बनाया गया।
 जैसे आज हाउस टैक्स, सेल टैक्स और जीएसटी, 
लेकिन एक टैक्स और बनाया गया...ब्रेस्ट टैक्स मतलब स्तन कर !
और ये टैक्स सिर्फ निचली जाति की महिलाओं के लिए था ..

त्रावणकोर 
में निचली जाति की महिलाएं सिर्फ कमर तक कपड़ा पहन सकती थी !
अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने वे जब भी गुजरती उन्हें अपनी छाती खुली रखनी पड़ती थी।
 अगर महिलाएं छाती ढकना चाहें तो उन्हें इसके बदले ब्रेस्ट टैक्स देना होता था । 

इसमें भी दो नियम थे ..
 जिसका ब्रेस्ट छोटा उसे कम टैक्स और जिसका बड़ा उसे ज्यादा टैक्स। और इसका निर्धारण अधिकारी उसके स्तनों को टटोलकर आकार और वजन के हिसाब से कर  निर्धारित करते थे !
 टैक्स का नाम रखा था मूलाक्रम ..
जमींदारों के घर काम करते वक्त दलित महिलाएं न स्तन ढक सकती थीं और न ही छाता लेकर बैठ सकती थीं ..

यह फूहड़ रिवाज सिर्फ महिलाओं पर नहीं, बल्कि पुरुषों पर भी लागू था। 
उन्हें सिर ढकने की परमिशन नहीं थी। 
अगर वे कमर के ऊपर कपड़ा पहनना चाहें और सिर उठाकर चलना चाहें तो इसके लिए उसे अलग से टैक्स देना पड़ेगा।
 यह व्यवस्था ऊंची जाति को छोड़कर सभी पर लागू थी, 
लेकिन वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे होने के कारण निचली जाति की दलित महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ी ..

अगर इस वर्ग की महिलाओं ने कपड़े से सीना ढका तो ..
सूचना राजपुरोहित तक पहुंच जाती थी !
 पुरोहित एक लंबी लाठी लेकर चलता था जिसके सिरे पर एक चाकू बंधी होती थी।
 वह उसी से ब्लाउज खींचकर फाड़ देता था। उस कपड़े को वह पेड़ों पर टांग देता था। 
यह संदेश देने का एक तरीका था कि आगे कोई ऐसी हिम्मत न कर सके।

19वीं शताब्दी की शुरुआत में 
चेरथला गांव में नांगेली नाम की एक महिला थी।
 स्वाभिमानी और क्रांतिकारी ..
उसने तय किया कि ब्रेस्ट भी ढकूंगी और टैक्स भी नहीं दूंगी। 
नांगेली का यह कदम सामंतवादी लोगों के मुंह पर तमाचा था। 
अधिकारी घर पहुंचे तो नांगेली के पति चिरकंडुन ने टैक्स देने से मना कर दिया।
 बात राजा तक पहुंच गई। राजा ने एक बड़े दल को भेज दिया ..

राजा के आदेश पर टैक्स लेने अफसर नांगेली के घर पहुंच गए। 
पूरा गांव इकट्ठा हो गया।
 अफसर बोले, 
"ब्रेस्ट टैक्स दो, 
किसी तरह की माफी नहीं मिलेगी।" 
नांगेली बोली, 
'रुकिए मैं लाती हूं टैक्स।'
 नांगेली अपनी झोपड़ी में गई।
 बाहर आई तो लोग दंग रह गए। 
अफसरों की आंखे फटी की फटी रह गई। नांगेली केले के पत्ते पर अपना कटा स्तन लेकर खड़ी थी। 
अफसर भाग गए। 
लगातार खून निकलने  से नांगेली जमीन पर गिर पड़ी और फिर कभी न उठ सकी।

इसके बाद 

नांगेली की मौत के बाद उसके पति चिरकंडुन ने भी चिता में कूदकर अपनी जान दे दी।

 भारतीय इतिहास में किसी पुरुष के 'सती' होने की यह एकमात्र घटना है।
 इस घटना के बाद विद्रोह हो गया।
 हिंसा शुरू हो गई। 
महिलाओं ने फुल कपड़े पहनना शुरू कर दिए। 
मद्रास के कमिश्नर त्रावणकोर राजा के महल में पहुंच गए। 
कहा, "हम हिंसा रोकने में असफल साबित हो रहे हैं कुछ करिए।"
 राजा बैकफुट पर चले गए। 
उन्हें घोषणा करनी पड़ी कि अब इन जातियों की महिलाएं बिना टैक्स के ऊपर कपड़े पहन सकती हैं।

इस कुप्रथा के खिलाफ विद्रोह करने वाले लोग पकड़े जाने के डर से श्रीलंका चले गए। 
वहां की चाय बगानों में काम करने लगे ..
 इसी दौरान त्रावणकोर में अंग्रेजों का दखल बढ़ा। 
1859 में अंग्रेजी गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने त्रावणकोर में इस नियम को रद्द कर दिया। अब हिंसा करने वाले बदल गए। 
ऊंची जाति के लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी। नादर महिलाओं को निशाना बनाया और उनके घर अनाज सब जला दिए। 

1865 में प्रजा जीत गई और सभी को पूरे कपड़े पहनने का अधिकार मिल गया। 
इस अधिकार के बावजूद कई हिस्सों में दलितों को कपड़े न पहनने देने की कुप्रथा चलती रही। 
1924 में यह कलंक पूरी तरफ से खत्म हो गया, 
क्योंकि उस वक्त पूरा देश आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा था।”

 एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शीबा केएम कहती हैं, "ब्रेस्ट टैक्स का मकसद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था।" नंगेली के पड़प

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Milan Tomic

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