कबीरदास जी ने मानवीय विचारों को अपना कर सर्वकलयाणकारी ऊंच नीच भेदभाव की जातियाँ और अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ घोर आंदोलन किया था।
कबीरदास ने ब्राह्मणों की ऊंच नीच की व्यवस्था के खिलाफ कहा है कि
👉 रे ब्राह्मण तू ब्राह्मणी का जाया,
👉 आन बांट कांहे नही आया।
अर्थात रे ब्राह्मण अगर तू अपने आप को ऊंच मानता है तो किसी और रास्ते से क्यों नहीं पैदा हुआ??
👉 कबीरदास जी ने अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ कहा था कि -
👉 दुनिया ऐसी बावरी पाथर पूजन जाय
👉 घर की चकिया कोई न पूजे जिसका पीसा खाय।
मूर्ति पूजा का घोर बिरोध किया था।
भेदभाव की व्यवस्था पर कबीरदास जी ने कहा था कि
👉 कबीरा कूंआ एक है पानी भरे अनेक,
👉 बर्तन में ही भेद है पानी सब में एक।
👉 कहे कबीरा जग अंधा जैसी अंधी गाय 🐮
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